शय्यामुत्रता | Bed wettings
मै डॉ. अरविंद तुळशिरामजी मेहरे आयुर्वेदिक बाल विशेषज्ञ न्यूरो आणि डेव्हलपमेंटल बालरोगतज्ञ. आज शय्यामुत्रता याने बिस्तर गीला करना और आयुर्वेदीक उपचार के बारे मे बात करेंगे |
बेड वेटींग्स याने बिस्तर पर सोते समय अनजाने अपने आप मुत्रप्रवृती याने पेशाब हो जाने को शय्यामुत्रता याने बेड वेटींग्स र्का संज्ञा दी जाती है. यह बाल्यावस्था में पायी जाने वाली एक स्वाभावीक विकती हैं|
नवजात बच्चो मे मुत्रव्याग की क्रिया एक प्रतिवर्त के रूप में घटित होती है, उसका मुत्राशय जब भी पेशाब से भर जाता है, उसकी पेशियों में स्वतः आकुंचन होता है। और मूत्र मूत्रमार्ग से निकलकर बाहर हो जाता है, उसकी यह क्रिया पुर्णत अनैच्छिक होती है | उसके लिये उसे कुछ सोचना, समझना या सीखना नहीं पड़ता |
एक से 3 साल तक के बच्चे का बिस्वा गिला करना बहुत ही आम बात है |बालक जैसे जैसे बड़ा होता है, उसमें शारीरिक मानसिक परिपक्वता आती है। परिपक्वता के साथ ही अपनी पेशियों पर भी नियंत्रण प्राप्त होने लगता है |
इस पेशिय नियंत्रण को फलस्वरूप ही वह धीरे धीरे मुत्र को रोकने और उसे अपनी इच्छानुसार त्यागने को समर्थ होने लगता है, २ वर्षे का होते होते अधिकांश बच्चे कम से कम दिन में बिस्तर पर पेशब नही करते ,३ से ५ वर्षों के बीज अधिकांश बच्चे लगभग ८०% बच्चे बिस्तर पर पेशाब करने की आदतसे मुक्त हो जाते हे | इसके बाद भी बच्चे में इस आदत का बना रहना असामान्यता या विकृती का घोतक है इस व्याधि को शय्यामुत्रता / बेड वेटींग्स या रात| में बिस्तर गिला करना कहा जाता हे |
कई बार कच्चे इमोशनल, डर या फिर मानसिक तनाव के कारण भी रात में बिस्तर पर पेशाब कर देते है।
कई बार- भय, चिन्ता,क्रोध , ईच्छा, मनोविका के कारण भी बिस्तर गिला करते हैं |
पेशाब को रोकने और इच्छानुसार निश्चित स्थान पर व्याका करने की आदत बच्चों को सिखानी पड़ती है,वैसा नहीं सिखाया तो बचके बिस्तर गिलाका है |
– दिनभर बच्चे को डायफर पहनाने से बच्चों को निश्चित स्थान पर मूत्र खुश्ती आदत नही पड़ती और वह कभी भी और कही भी मूत्र करते हे |
एक से डेढ़ साल बाद डायपर कम करना जरूरी है |
मुत्रादाय की शिथिलता, वृक्कों के विकार, कब्ज़, कृमी (worms),पेटदर्द ,गुर्दे की पथरी, संवेदना हानि इस तरहकी अलग अलग बच्चो मे बिस्तर गिला करणे के कारण होते है।
शय्यामुत्रता के उपचार की व्यवस्था रोग के कारणो के अनुरूप ही करनी पड़ती है मात्र, औषधीयों को खीलाने से प्रायः असफलताही हाथ लगती है |हमरे श्री विश्वदत्त आयुर्वेदमे इसके लिये केस स्टडी करणे, जो कारण है उसका सही निदान करके उसपे हमारी संशोधित अनुभवसिंद आयुर्वेद उपचार पद्धति के द्वारा इस इस बीमारिको जड़ से, खतम करके बच्चे अपने सामान्य हो जाते है।
उदा. हमरो सेंटर मे २ साल से १६ साल तक के बच्चे शय्यामुत्रता के लिए आते हे , उतनी साल तक उन्हें अछि तरह से उपचार देते हे इतने साल तक भी इस शर्मिंदगी के साथ जीवन बिताते हैं।
ओ अपनी इन आदत के कारण कहीं बाहर नहीं जाते क्योकि सभी को पता चल जायेगा इन सभी मातापिता को बताना है की आप हमारी अनुभवसिंधू आयुर्वेदिक उपचार पद्धति को अपनाओ और अपने बच्चे को इस बिमारीचे पुर्नता: अच्छा कर सकते हो |
उदा- हमरी सेंटर मे १५ साल का लडगा उसे उसके पैरेंट लेके आहे, ओ स्पोर्ट में अच्छा था लेकिन इस आदत की वजह से जभी बाहर उसका खेल होता तो वह नहीं जाता था क्योकि उसको डर सताता की सबको उसकी इस आदत का पता चल जायेगे उसपर ६ महिने उपचार में पुर्नता: अच्छा ठिक हो गया है।
2) दुसरा बच्चा था उसकी उम्र १२ साल थी उसके बारे में रीज़न था उसका मोटापा